(1)
(3)
सरूप गणतंत्र के गिरत जात निसि दिन
घरेच म जन के जब तंतर बिगड़ गे
रहि नई सकै कुटुंब मिलजुल के अब
नैतिकता के मंतर ह बिलकुल बिसर गे
मुलुक के मनखे जुरियाये के जंतर घलो
टूट टूट एती ओती कहाँ नइ बगर गे
(2)
कइसे होही देस हमर दुनिया के नंबर एक
हवे चारो मुड़ा चोरी बैमानी के बोलबाला
देस के विकास खातिर बने रथे जउने योजना
बड़े बड़े घपला के हो जथे उहू हवाला
छाती चौड़ा करके घूमत रथें दिन-रात
करे रहै चाहे कतको बड़े से बड़े घोटाला(3)
किसिम किसिम के मिलही सुने बर गोठ बात
भीतरे भितर बंटही कपड़ा लत्ता दारू जी
कइहीं जनता ल साल दू हजार तेरा तेरा
होहीं सत्ता खातिर मरे मारे बर उतारू जी
करहू मतदान जान दावेदार के चरित्तर
इतवारी, बुधारू, सुकारो चाहे आव समारू जी
जय जोहार .......