मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

पिण्ड दान (गया जी)

जनम ले दइ ददा ल खोयेन । कर सुरता हम कभु नइ रोएन।।
कर नइ पायेन उंखर सेवा। अइसन होइस काबर देवा।।
ममा मामि ममदाइ पोटारिस। ननिहाल मोर हाल संवारिस।। 
नइ उतर सके रिन दद दाइ के। नना नानि मम मामि दाइ के ।
कथें किस्सा पुरखा तारे के। "गया" जाके पिंडा पारे के।।
सुन किस्सा योजना बनायेन। गया-पंडित-संपर्क बनायेन।।
संग भाई हम आयेन "गया"। अइस सुरता दइ ददा के मया।।
पंडित पिण्ड-दान समझाइस। खरचा पानी घलो बताइस।। 
होईस बढ़िया करे ले ठेका। ओइसे अब्बड़ लगथे टेका।।
काम धाम निपटाइ के, लहुटेन अपन गांव।
जम्मो देवी देवता, परथन सबके पांव।।
         असल बात ये हे के भारत, हमर देश, म धरम करम मनइ के रिवाज आज ले नही, सैकड़ों साल ले चलत हे। देवी देवता के गिनती ल झन पूछ। तीन लोक तैंतीस करोड़ देवता। कतको अंधविश्वास कहि लौ, कोनो कोंटा म डर छुपेच रथे। मान्थेंच। नई मानय तौनो मन, जब बिपत परथे, अउ छोड़े नही त इही रीत रिवाज के सरन मा जाथें। बाकी एखर बर लिखे ल त गाड़ा भर हे। मैं डिटेल म नई जाना चाहंव। अत्केच कहना चाहत हौं के अइसन काम बर पंडा पुरोहित अउ जजमान दूनो एक दूसर के दिमाग ल पढ़ के, अउ जउन भगवान के नांव ले के करम करथौ करवाथौ ओखर खियाल रख के, श्रद्धा ले काम निपटवावौ फेर देखौ ओखर परिनाम। मैं जउन दृश्य देखेंव उहाँ के के  कइसे पण्डा ह, जजमान के कम पइसा चढ़ाए ले, बिफर गे रिहिस अउ गाली गलौच म उतर गे रिहिस, ओला देख के एकदम खीख (गंदा) लागिस जी। अइसने म त श्रद्धा ख़तम हो जथे ... .. अब उहाँ ले सरूप बदल के आये के बाद के फोटू म नजर दउड़ावौ थोकिन: 
गया ले आये के बाद के फोटू 
जय जोहार .......

    (ममदाइ=नानी) (पोटारिस=गले लगा लिया)