शायद ब्लॉगिंग के चस्का हा दू तीन साल पहिली चघे रिहिस। संगवारी मन चाहे लबारी के कहौ के सिरतोन के, काहींच लिखे मा भारी बड़ाई करैं। अड़हा तान। समझन हमर लिखई अतेक सुग्घर हवे। झन पूछ मारे फूल के कुप्पा। अब का हे एक तो एक ठन थोथना-पोथी (फेस बुक) आये हे।जउन ल देखौ उहें बीजी हे। अब थोर थोर समझ मा आवत हे, पहिली का रिहिस "नवा बईला के नवा सींग .. चल रे बईला टींगे टिंग" अब अइसे लागथे के ये ब्लॉग के दुनिया के मनखे मन अघा गे हें। पगुराए के भर काम हवे। ओइसे कतको खरच लौ गियान हा बाढ़ते च रथे। कतको खा डरौ पेट नई भरै। अउ जतका सरलगहा सउखिया हमर जइसे ब्लॉगर बने रिहिन उंखर छटई होवत हे तैसे लागथे। तभे मै रोज अपन ब्लॉग मा झाँकथौं, देखथौं के अरे काहीं नापसंदच के दू चार आखर लिखे मिलही कहिके त पाथौं के देखैया घलो नई ये। ये सब बात ला सोच के अब मन कहत हे; "बेटा जादा झन खपा अपन भेजा ला एमा। तियाग दे ...बंद कर दे ये ब्लॉगिंग। जेखर सेती तोर रोजी रोटी चलत हे ओमा धियान दे" ... अब देखत हौं धीरज धर के ....फेर मन ला मार के बन्देच कर देहूं ये सब चोचला ल ...घेरी बेरी इहीच बात अपन बर उमड़थे "यदि इहाँ कोनो कोंटा मा जघा बनाना हे त अपन "बालकनी" (डिमाग) म कुछ बने बने गोठ बात भर। नई त जय राम जी की .................
जय जोहार .........
प्रिय सूर्यकांत जी अभिनन्दन आप का ब्लागिंग जगत में आप की भाषा भी सीखने को मिलेगी बहुत अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंबचपन संघर्षमय था सुना प्रभु सब मंगल करेंगे करते हैं
लिखते रहिये सुन्दर ख्यालात और रचनाएँ
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
प्रिय सूर्यकांत जी,
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना दिवस के पूर्व सप्ताह में "छत्तीसगढ़ी-ब्लॉग" के शुभारम्भ पर हार्दिक शुभकामनायें.
बिनती हे के बिना नागा के ये ब्लॉग मा रोज एक न एक नवा पोस्ट डालव .