मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

लचक गे घेंच

लचक गे घेंच

एंड्रॉयड मोबाइल
बना डरे हे सबला उतियाइल
वाह रे फेस बुक अऊ व्हाट्सएप
गर्दन ल कर डरे हे डाउन, नई रहय अप
भले लचक जाय तुंहर घेंच
इही म चलन दौ अपन अपन दांव
घुमावत रहौ पेंच....
जय जोहार...

रविवार, 24 अगस्त 2014

मोर गुरतुर बोली

मोर गुरतुर बोली

बोली छत्तीसगढ़ी हे गुरतुर
रेंगै नही जीभ तोर तुरतुर
समझ म सबके आ जाथे
नइ जानन कहि के इतराथें
दूसर ल का दोष दन, अपने ल लगथे लाज.
बहुभाषी ज्ञानी बनौ, इहू ल बढ़ावौ आज..
जय जोहार....

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नवा साल के गाड़ा गाड़ा बधाई


नवा साल के गाड़ा गाड़ा बधाई
बीते साल ह बीतिस कइसे 
नज़र थोकिन दउड़ाव 
सब दिन एक बरोबर नइ  होय 
कभू घाम कभु छाँव 
कलकुत माँ काटेव जउन दिन ल 
झन ओला गोहराव 
प्रभु किरपा ले उबरेव कइसे 
ओला झनिच भुलाव 
नवा साल म खुशहाली बर 
धरती माता के रखवाली बर 
उठे रहै तुंहर पाँव 
लुटै न अस्मत मई लोगन के 
कवच उंखर बन जाव 
नवा साल के देत बधाई 
मैं प्रभु पद सीस नवांव 
साल दू हजार चउदा  हमर जम्मो संगवारी मन बर मंगलकारी होय इही कामना करत.… 
जय जोहार …

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

बापू बपरा देखत होही देस के खस्ता हाल।


बापू बपुरा देखत होही, देस के खस्ता हाल। 
नानकुन नोनी ले दई बहिनी के होगे हे हाल बेहाल॥ 
मार काट दिन रात बढ़त हे, बाढ़त हे चोरी हारी। 
देस के करता धरता करथें, छीना झपटी मारा मारी।
साधू संत के भेस म लुटथें बहिनी बेटी के अस्मत। 
अरबों के असामी बन जाथें वाह रे इन्खर किस्मत। 
मिलिस अजादी, पर भुला डरेन हम नियम संयम अनुशासन। 
रिश्ता नाता के गला घोंट के बन जाथन दु:शासन। 
अरे दाल म काला केहे ल छोड़ के केहे ल परत हे करिया दाल। 
बापू बपरा देखत होही देस के खस्ता हाल। 
गांधी जयंती के उपलक्ष म आप जम्मो ल बहुत बहुत बधई…।

सोमवार, 28 जनवरी 2013

चोरी बैमानी के बोलबाला

(1) 

सरूप गणतंत्र के गिरत जात निसि दिन 
घरेच म जन के जब तंतर बिगड़ गे
 रहि नई सकै कुटुंब मिलजुल के अब 
नैतिकता के मंतर  बिलकुल बिसर गे
मुलुक के मनखे जुरियाये के जंतर घलो   
टूट टूट  एती ओती  कहाँ  नइ बगर गे 
(2)

कइसे होही  देस हमर दुनिया के नंबर एक  
हवे चारो मुड़ा चोरी बैमानी के  बोलबाला
देस के विकास खातिर बने  रथे जउने योजना
बड़े बड़े घपला के हो जथे उहू हवाला 
छाती चौड़ा करके घूमत रथें दिन-रात
करे रहै चाहे कतको बड़े से बड़े घोटाला
(3) 
किसिम किसिम के मिलही सुने बर गोठ बात 
भीतरे भितर बंटही कपड़ा लत्ता दारू जी 
 कइहीं जनता ल  साल दू हजार तेरा तेरा
होहीं सत्ता खातिर मरे मारे बर उतारू जी 
करहू मतदान जान दावेदार के चरित्तर 
इतवारी, बुधारू, सुकारो चाहे आव समारू जी 
जय जोहार .......

मंगलवार, 15 जनवरी 2013

पहाड़ा पढ़े के उटपुटांग तरीका

पहाड़ा पढ़े के उटपुटांग तरीका 
(1)
दू एकम दू 
पढ़े भर ले काम नई चले 
कढ़े  ल परथे घलो 
नई त रहि जाथें भोंदू 
(2)
दू दुनी चार 
एति ओती मन झन दउड़ा 
रख सुग्घर बिचार 
(3)
दू तिया छै 
भीख मांग खाए ल झन परे 
मेहनत करे ले कभू झन डरे 
पचरा म कखरो कभू झन परे 
बोलव बोलावौ प्रेम से भइया 
सियाराम की जै 
 (4)
दू चौके  आठ 
बैर भाव दुष्टाई ल छोड़के 
प्रेम प्यार तइयार मदद बर 
एखर पढ़व पढ़ावव पाठ 
(5)
दू पंचे दस 
बिपत के मारे ल तुरतेच  थेघौ (सहारा दौ)
ईमानदारी के रद्दा म रेंगौ 
बईमानी करे  बर कोनो  कतको उकसावै 
होना नई ये अपन रद्दा ले 
हमला कभू  टस ले मस 
 (6)
दू छक्के बारा
जब देखै दुश्मन छटकार के आंखी  (आँख तरेरे)
ओखर झट कर दौ वारा न्यारा 
(7)
दू सत्ते  चौदा 
धरती म अंवतरे ले पहिली 
जिए मरे ले मुक्ति पाए बर 
सत्करम कर जिनगी जिए  के 
होए रथे सौदा ....
(लेकिन मानन नही ... लगे रथन परपंच म )
(8)
दू अट्ठे सोला 
दिन रात लगे रथन तोरी मोरी म 
करत रथन तोला  मोला 
(9)
दू निया अट्ठारा
दई ददा काकी कका ले प्यारा 
हो जथे टुरा बर,  सास ससुर 
सारी सारा 
(10)
दू दहाम बीस 
अद्भुत पहाड़ा पढ़ के झन गुसियाहू 
झन डरिहौ दांत ल पीस 
..........जय जोहार  

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

पिण्ड दान (गया जी)

जनम ले दइ ददा ल खोयेन । कर सुरता हम कभु नइ रोएन।।
कर नइ पायेन उंखर सेवा। अइसन होइस काबर देवा।।
ममा मामि ममदाइ पोटारिस। ननिहाल मोर हाल संवारिस।। 
नइ उतर सके रिन दद दाइ के। नना नानि मम मामि दाइ के ।
कथें किस्सा पुरखा तारे के। "गया" जाके पिंडा पारे के।।
सुन किस्सा योजना बनायेन। गया-पंडित-संपर्क बनायेन।।
संग भाई हम आयेन "गया"। अइस सुरता दइ ददा के मया।।
पंडित पिण्ड-दान समझाइस। खरचा पानी घलो बताइस।। 
होईस बढ़िया करे ले ठेका। ओइसे अब्बड़ लगथे टेका।।
काम धाम निपटाइ के, लहुटेन अपन गांव।
जम्मो देवी देवता, परथन सबके पांव।।
         असल बात ये हे के भारत, हमर देश, म धरम करम मनइ के रिवाज आज ले नही, सैकड़ों साल ले चलत हे। देवी देवता के गिनती ल झन पूछ। तीन लोक तैंतीस करोड़ देवता। कतको अंधविश्वास कहि लौ, कोनो कोंटा म डर छुपेच रथे। मान्थेंच। नई मानय तौनो मन, जब बिपत परथे, अउ छोड़े नही त इही रीत रिवाज के सरन मा जाथें। बाकी एखर बर लिखे ल त गाड़ा भर हे। मैं डिटेल म नई जाना चाहंव। अत्केच कहना चाहत हौं के अइसन काम बर पंडा पुरोहित अउ जजमान दूनो एक दूसर के दिमाग ल पढ़ के, अउ जउन भगवान के नांव ले के करम करथौ करवाथौ ओखर खियाल रख के, श्रद्धा ले काम निपटवावौ फेर देखौ ओखर परिनाम। मैं जउन दृश्य देखेंव उहाँ के के  कइसे पण्डा ह, जजमान के कम पइसा चढ़ाए ले, बिफर गे रिहिस अउ गाली गलौच म उतर गे रिहिस, ओला देख के एकदम खीख (गंदा) लागिस जी। अइसने म त श्रद्धा ख़तम हो जथे ... .. अब उहाँ ले सरूप बदल के आये के बाद के फोटू म नजर दउड़ावौ थोकिन: 
गया ले आये के बाद के फोटू 
जय जोहार .......

    (ममदाइ=नानी) (पोटारिस=गले लगा लिया)