अपन भाखा के हंसी ठिठोली
मंगलवार, 14 अप्रैल 2015
लचक गे घेंच
लचक गे घेंच
एंड्रॉयड मोबाइल
बना डरे हे सबला उतियाइल
वाह रे फेस बुक अऊ व्हाट्सएप
गर्दन ल कर डरे हे डाउन, नई रहय अप
भले लचक जाय तुंहर घेंच
इही म चलन दौ अपन अपन दांव
घुमावत रहौ पेंच....
जय जोहार...
3 टिप्पणियां:
Sanju
23 अप्रैल 2015 को 8:25 pm बजे
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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बेनामी
1 जून 2015 को 11:18 am बजे
वाह, बहुत खूब।
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बेनामी
1 जून 2015 को 11:18 am बजे
वाह, बहुत खूब।
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सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
वाह, बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब।
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